जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
जो भोग भुक्ति से ऊबे हैं
,वही योग भक्ति मे डूबे हैं !
हमारे उज्जवल भविष्य के
लिए प्रभु की आज्ञा है कि तुम व्यर्थ बेठे हो श्वासों को खोते हुए ! सही पुरुषार्थ
करो ,पापों से यदि दूर होना चाहते हो तो
हस्तोपरिहस्त रखकर ध्यान की मुद्रा मे बैठ जाओ, कर्म बंधनों से मुक्त हो जाओगे !
अन्यथा सँसार जेल मे बंद हो जाओगे ! जबकि हम सभी जानते हैं कि अन्त मे होगी चला चली .........
चार जने मिल खाट उठावें ,
रोवत ले चले डगर डगरिया !
कहे कबीर सुनो भाई साधो ,
संग चली वही सुखी लकडियाँ
!
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