मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Tuesday 22 January 2013

कर्तव्य व हित


जय  जिनेन्द्र मित्रों .......शुभ प्रात: प्रणाम
निर्मल ह्रदय से ,कर्तव्य व हित की भावना से किया गया रोष भी रमणीय होता है ! जैसे कि केसर की कटुता भी मनभावनी लगती है !
संस्कारों , सभ्यता एवं सदाचार को उद्दीप्त करने के लिए हित और पथ्य का यदि बार-बार उपदेश दिया जाता है तो उसमे कोई दोष नहीं है !
किन्तु यह कर्तव्य बुद्धि उसी में जागृत होती है ,जो स्वयं अपने कर्तव्य को समझता हो और दूसरों के द्वारा भले ही वह छोटे हों ,कर्तव्य का बोध दिये जाने पर उसका स्वागत करता हो !

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