मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Wednesday 22 January 2014

भाव से ही बन्धन होता है , भाव से ही मुक्ति

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !
भाव से ही बन्धन होता है , भाव से ही मुक्ति ! मन ही बन्धन एवं मुक्ति का कारण है ! बन्धन शरीर से नही होता बल्कि शरीर के निमित्त से मन में जो विकल्प होते हैं , जो राग द्वेष रुपी परिणाम होते हैं ,उन परिणामों एवं विकल्पों के कारण ही कर्म बंध होता है !

आँखें जब तक हैं , तो  वे रूप को ग्रहण करेंगीं ही ! अच्छा या बुरा जो भी दृश्य उनके सामने आएगा ,उसे देखेंगीं ही !साधक बनने के लिए सूरदास बनने की आवश्यकता नही है किन्तु आवश्यक यह है कि जो भी अच्छा या बुरा रूप सामने आये उसे वे ग्रहण भले ही करें ,किन्तु उसके सम्बन्ध में राग द्वेष का भाव न आये !मन में किसी प्रकार का दुर्विकल्प न हो तो आँखों से कुछ भी देखने में कोई हानि नही है ! यही स्थिति अन्य इन्द्रियों के विषयों में भी कही जा सकती है !शरीर तथा इन्द्रियां आत्मा का न हित कर सकती हैं न अहित !

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