मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday 18 January 2014

जड उखाडीये ,जड़

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !



एक साथ करोड़ों शत्रुओं से जूझने वाले कोटि भट्ट वीर भी अपने मन की वासनाओं के आगे थर थर कांपने लगते हैं ,उनके इशारे पर नाचने लगते हैं ! हजारों वीर धन के लिए प्राण दे देते हैं तो हजारों सुन्दर स्त्रियों पर मरते हैं ! रावण जैसा विश्व विजेता वीर भी अपने अंदर की वासना से मुक्ति न पा सका ! अतएव जैन दर्शन कहता है कि अपने आप से लड़ो ! अंदर की काम वासनाओं से लड़ो ! बाहर के शत्रु इन्ही के कारण जन्म लेते हैं विष वृक्ष के पत्ते नोचने से काम नही चलेगा ! जड उखाडीये ,जड़ ! जब अन्तरंग ह्रदय में कोई सांसारिक वासना ही न होगी ,काम, क्रोध, लोभ आदि की छाया ही न रहेंगी ,तब बिना कारण बाह्य  शत्रु  क्योंकर जन्म लेंगें ?

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