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Sunday 7 October 2012

अनुभव शिविर के


अनुभव शिविर के
परम पूज्य प्रज्ञा योगी दिगम्बराचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव के चरणों में शत शत वंदन ,प्रणाम !
मै इस लेख के माध्यम से अतिशय क्षेत्र एवं गुरुदेव की दीक्षा स्थली श्री जैन जति जी रोहतक में ,परम पूज्य प्रात: स्मरणीय आर्ष मार्ग संरक्षक कवि हृदय प्रज्ञा योगी दिगम्बर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी के पावन सानिध्य  में  प्रथम बार आयोजित  होने वाले रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर (19 sep 2012- 28 sep 2012)से प्राप्त अनुभवों को सांझा करना चाहती हूँ एवं अपनी भावनाओं को गुरु गुप्तिनंदी जी तक पहुँचाना चाहती हूँ !  
मेरा यह अनुभव एक अद्भुत व रुचिकर रहा ! यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भी गुरु गुप्तिनंदी इ के पावन आशीर्वाद से रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर का पूर्ण लाभ लेने का सुअवसर मिला और मै सफलता पूर्वक इस शिविर में अधिकाँश समय देने में समर्थ रही ! यह शिविर बहुत ही व्यवस्थित ढंग से आयोजित किया गया ! इस आयोजन में श्वेत वस्त्रों को धारण करने की महत्ता का व्याख्यान करते हुए सभी श्रावक श्राविकाओं के लिए इन्हें पहनना अनिवार्य किया गया तथा कमंडल एवं पीछी (सफ़ेद रुमाल के रूप में) अनिवार्य की गयी ताकि सभी श्रावकों में एक साधु की भावना जाग्रत हो सके एवं ध्यान प्रक्रिया में ये सब मददगार साबित हो सके ! यह अपने आप में एक अनूठा कार्यक्रम रहा !इस आयोजन की एक मुख्य विशेषता यह रही कि गुप्तिनंदी जी ने बहुत  ही व्यवस्थित एवं अनुशासित ढंग से पापों का प्रतिक्रमण कराते हुए प्रार्थना ,आलोचना पाठ ,प्रायश्चित पाठ एवं समाज और राष्ट्र के प्रति प्रतिज्ञा एवं संकल्प दिलवाते हुए मौन ध्यान व सक्रिय ध्यान का अभ्यास करवाया !
मौन साधना व ध्यान में विभिन्न चक्रों जैसे मूलाधार चक्र ,स्वादिषठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,अनाहत चक्र ,विशुद्धि चक्र ,आज्ञा चक्र ,सहस्त्रार चक्र पर मधुर संगीत एवं विभिन्न प्रकार की धव्नियों के साथ और सक्रिय ध्यान में भक्ति के साथ विभिन्न घटनाओं जैसे महावीर भगवान का जन्म कल्याणक ,सीताजी की अग्नि परीक्षा ,चन्दनबाला का महावीर प्रभु को आहार दान  आदि आदि पर ध्यान करने का अभ्यास करवाया गया ! इस शिविर में उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त विभिन्न धार्मिक व के माध्यम से दर्शाई गयी व आगामी नवरात्रों में करवाए जाने वाले नवग्रह शान्ति विधान की महत्ता पर भी प्रकाश डाला गया !
इस शिविर के माध्यम से मैंने ध्यान लगाने के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ सीखा जैसे कि गुरु गुप्तिनंदी जी की कार्यशैली अर्थात उन्होंने अपने संघ के समस्त मुनिश्री व माताजी को भी सम्मिलित किया ! मुनिश्री सुयाश्गुप्त जी ने सभी श्रावको को पापों का परिक्रमण करवाया ! मुनिश्री चन्द्रगुप्त जी एवं आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने अपनी मधुर वाणी में भजन एवं प्रार्थना करवाने में बहुत ही सुन्दर ढंग से योगदान दिया ! इस कार्यक्रम में स्वामी गौतम गंधर द्वारा रचित महाप्रतिक्रमण भी करवाया गया !
संक्षेप में यह आयोजन मेरे जीवन की एक यादगार घटना और अनुभव रहा और जीवन भर रहेगा !
नीलम जैन
धर्मपत्नी श्री अनिल जैन
फरुखनगर वाले
225-p
सेक्टर -2  हुडा रोहतक
Neelamjain910@gmail.com  

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