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Monday 8 October 2012

अनुभव शिविर का


परम पूज्य प्रज्ञा योगी श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव व संघ के चरणों में मेरा शत शत नमन ....वंदन ..
गुरुदेव के इस पावन चातुर्मास के दौरान दिनांक 19.09.2012 से 28.09.2012 तक भव्य दसलक्षण शिविर व महविधान का आयोजन किया गया जो कि बहुत ही रोमांचकारी व अद्भुत दृश्यों से भरपूर रहा !
आचार्यश्री व संघ द्वारा रचित सुन्दर –सुन्दर तर्जों पर आधारित पूजा हमने सुन्दर अष्ट द्रव्यों ,फल फूलों द्वारा भक्तिपूर्वक की !
वास्तव में एक गुरु के सानिध्य में पूजा भक्ति करना मेरे लिए ऐसा रहा जैसे साक्षात भगवान के समवशरण में भक्ति कर रही हूँ ! प्रतिदिन श्री जिन भगवान  का अभिषेक व शान्ति धारा करने का सौभाग्य मैंने भी पाया और यह सब मेरे लिए केवल गुरु के आशीर्वचनों से ही सम्भव हो पाया है ! मैंने अपने जीवन में प्रथम बार प्रतिदिन संध्या की बेला में एक श्रावक की भान्ति धवल स्वच्छ वस्त्रों ,जीव रक्षा हेतु रूमाल रुपी पीछी ,व गर्म शुद्ध जल शुद्धि हेतु साथ पाकर धयान शिविर में बैठने का सौभाग्य प्राप्त किया !आचार्य श्री ने अनेक महान सन्त ,आचार्यों एवं तीर्थंकरों के जीवन चरित्र कोअपनी दिव्य वाणी में  सुना कर मुझ जैसी पामर जीव को भी धन्य कर दिया ! उन्होंने बताया कि यदि हमें वास्तव में ब्रह्मचर्य धर्म सीखना है तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम से सीखें जिन्होंने यज्ञ को संपन्न करने के लिए कोई पर स्त्री नहीं बल्कि सोने की सीता बनवाकर यज्ञ को पूरा किया !
वह कभी पर स्त्री को माता बहन के अलावा दृष्टि से देख भी नहीं सकते थे !लक्ष्मण ,जिन्होंने  अपनी भाभी सीता को मात्र नुपुर से पहचाना ,क्योंकि यथार्थ में उन्होंने कभी सीता जी को नजरें भी उठाकर नहीं देखा था ! ध्यान में भगवान महावीर के बाल रूप ,उनका महान जन्म उत्सव खूब झूमकर भक्ति की हमने ! ऐसा मन कर्ता था कि इस शिविर एवं पूजा का समापन कभी जीवन में हो ही ना ! वास्तव में इतने रोमांचकारी विषयों पर आधारित ध्यान में मैंने अपने आप को इस भारत क्षेत्र में नहीं ,अपितु भगवान के समवशरण में पाया ! मै स्वयं को धन्य समझती हूँ कि इस पंचम काल में उत्तम कूल पाकर मैंने साक्षात भगवान का दर्शन गुरुदेव  की कृपा से ही अंतर्मन समरण  किया ! वास्तव में एक मात्र प्रभु भक्ति ही होती है जो हमें रत्नत्रय से मोक्ष मार्ग पर चलने की ओर प्रेरित करती है ! मै इन दस दिनों के एक एक पल का स्मरण करती हूँ एवं ये पल मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगें ! जय गुरुदेव !  

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