मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 10 October 2012

अनुभव शिविर के


परम पूज्य प्रज्ञा योगी आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी व समस्त आचार्य संघ के पावन चरणों में मेरा शत शत नमन ....
रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर व दसलक्षण पूजा में जोकि दिनांक 19.09.12 से  28.09.12 तक में जो मैंने अनुभव किया उसे शब्दों में बयाँ करना इतना आसान नहीं है मगर मैंने जो अनुभव किया जो  सुख प्राप्त किया वो सिर्फ सच्ची भक्ति व लगन से ही सम्भव है !
शिविर में हर दिन मैंने कुछ न कुछ नया ही प्राप्त किया ! ध्यान में लीन होने पर पहली बार प्रभु को अपने इतने करीब पाया मैंने ! ऐसा लग रहा था मानो मै इस सँसार में नहीं बल्कि ऐसी जगह जहाँ हमेशा जाने की इच्छा रही वहाँ पहुँच गयी हूँ ! भगवान श्री ऋषभदेव जी के दर्शन करके मन बहुत प्रसन्न हुआ ! ऐसा लग रहा था कि भगवान अभी बोलेंगें ! उनकी वो प्रसन्नचित्त मुद्रा को लखकर मेरा सोया भाग्य भी जाग गया ! उनकी ये अद्भुत छवि आज भी मेरे ह्रदय में विराजमान है !
कर घातिया कर्मों का नाश जिन्होंने अरिहंत पद को पाया है !
अपनी दिव्यवानी से जिन्होंने समवशरण को महकाया है !
जिनकी मात्र झलक से ही सारे पाप नाश हो जाते हैं !
ऐसे ऋषभदेव के दर्शन को मेरा मन अकुलाया है !
इस शिविर में आचार्य श्री ने जो महान व सन्त जनों का जीवन चरित्र सुनाया उसको सुनकर भाव और उमड़ने लगे ! सती चन्दन बाला जो इतनी सहनशक्ति रख कर सब कुछ सह गयी ,जिनके सुन्दर केशों को सेठानी ने जड से उखाड दिया ,काराग्रह में डलवा दिया तब भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया और भगवान महावीर को अपनी इसी अवस्था में आहार दाने का सुअवसर प्राप्त किया !और जब वीर प्रभु चन्दनबाला के इतना नजदीक होकर वापस लौटने लगे तब चन्दन बाला ने अपनी अश्रुधारा से उनका पाद प्रक्षालन किया ,तब महावीर प्रभु उनके पास गये और जब उसके नयनों में नीर देखा तो उन्होंने उससे आहार ग्रहण किया और ज्यों ही आहार के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो वे सभी बंधन खुल गये ! धन्य है वो सती चन्दन बाला जिन्होंने वीर प्रभु के साक्षात दर्शन का परम सौभाग्य प्राप्त किया !
ये असाता कर्म बड़े ही भारी जिनके कारण आई विपदा भारी
शोभ रहे थे जिनके तन पर कंगन ,वहीं चरणों में आन पड़ी बेडी भारी
दे  उडद बाकुले का आहार वीर प्रभु को ...खुल गयी बेडियाँ सारी !
दसलक्षण पूजा की तो बात ही निराली थी !पूजा में जो आनन्द आया वह अविस्मरणीय रहा है ! हर एक धर्म का गहराई से अर्थ समझने का मौका मिला ! संगीतमयी पूजा व भक्ति से बहुत आनन्द आया ! आचार्यश्री व संघ ने मिलकर जो पूजा करवाई वो हमेशा मेरे लिए यादगार रहेंगी ! मैंने इस पूजा में अपना मन खोलकर भक्ति भाव से नृत्य किया व अपने अंतर्मन की बात को सहर्ष स्वीकार किया !
मै इस दसलक्षण पूजा व शिविर में बैठकर धन्य हो गयी !
नमोस्तु गुरुदेव नमोस्तु गुरुदेव नमोस्तु गुरुदेव !
इति जैन

No comments:

Post a Comment