मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 23 October 2012

अब हर घर में रावण बैठा ......


हर तरफ जुल्म है बेबसी है ,सहमा सहमा सा हर आदमी है !
पाप का बोझ बढ़ता ही जाए, जाने कैसे ये धरती थमी है !
आज जिधर देखता हूँ तो बरबस ही ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं , लेकिन जरा सोचिये क्या.... अपने से शुरू करें और देखें अपने भीतर के रावण को ......क्या हम खुद इसी रावण की राह पर नहीं चल रहे ? क्या पराई बहन बेटी को देखकर हमारे मन में उनके प्रति वही भाव होते हैं जो अपनी माँ ,बहन अथवा बेटी को देखकर होते हैं ? क्या हम किसी को मित्रता का आवेदन (facebook etc social networking sites पर )उसकी अच्छाइयां देखकर भेजते हैं या उनकी सुन्दर तस्वीरों को देखकर ? जब देखता हूँ तो पाता हूँ कि आध्यात्म के ग्रुपों में भी लड़के  धडल्ले से आध्यात्मिक पोस्टों पर भी हाय ,हेल्लो करते दिखाई पड़ते हैं ! जब थोडा और देखता हूँ तो पाता हूँ कि बेहिचक सुन्दर लड़कियों /महिलाओं की पोस्ट पर comment में लिखते हुए गिडगिडाते हुए से लड़के दिखाई पड़ते हैं “Please add me ….” और भी पता नहीं क्या क्या दिखाई देता है ...क्या सब के मन में रावण नहीं बैठा .......एक लड़की/महिला  हाय/हेल्लो  क्या कह दे 20-30 comment तो मिनटों में दिखाई दे जाते हैं जबकि किसी सामजिक ,आध्यात्मिक राष्ट्रीय राजनीति य धर्म से जुडी पोस्ट पर Like करना भी दूर की बात है चाहे वो पोस्ट आपके लिए लिखने वाले ने एक –आध घंटा लगा कर ही लिखी हो !
हर साल दशहरे पर हम रावण के पुतले को जला कर खुशियाँ मनाते हैं ! बुराई पर अच्छाई की विजय कहते हैं लेकिन क्या हमारी कथनी और करनी में कहीं सामंजस्य है कहीं ? क्या हम बुराई से दूर जा रहे हैं या उसे आगे बढ़कर और अपना रहे हैं ? क्या हम अपनी शाकाहार की भारतीय सभ्यता और संस्कृति को छोड़ कर मांसाहार की विदेशी संस्कृति को नहीं अपना रहे ? नित्य नए खुल रहे KFC और Mcdonalds क्या हमें पतन और गिरावट की राह पर ले जा रहे हैं ये जानते हैं हम ? ...क्या आज हमारे लिए जो रक्षक होने चाहिये वही हमारे भक्षक नहीं बने हुए ? जरा सोचिये ! विचार कीजिये ! फिर मित्रों को दशहरे की मुबारकबाद दीजिए !
एक आह्वान और करना चाहूँगा ! इस वर्ष से और हर वर्ष  रावण के पुतले जलाना छोडिये ,पटाखे जलाना छोडिये और असंख्य निर्दोष जीवों की मृत्यु का कारण मत बनिए !
मारना ही है तो अपने अंदर के रावण को मारो ! मिटाना ही है तो अज्ञान का अन्धकार मिटाओ ! जलाना ही है तो ज्ञान का दीप जलाओ ! इन्ही भावनाओं के साथ !

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