मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Wednesday 13 February 2013

बंधन को समझो और तोडो !


बंधन को समझो और तोडो ! तुम्हारी अनन्त शक्ति के सामने बंधन की क्या है हस्ती ! बंधन का करता आत्मा ही बंधन को तोड़ने वाली है! इसके लिए अपने स्वरुप को, अपनी शक्ति को जगाकर प्रयत्न  करने की आवश्यकता है ,बस मुक्ति तैयार है !
साध्य तो मुक्ति है लेकिन साधन ? साधन के विषय मे अलग अलग मत हो सकते हैं ,किसी ने कहा ज्ञान मुक्ति का साधन है किसी ने कहा भक्ति ही एकमात्र साधन है और किसी का जोर सेवा पर रहा ,कर्म पर बल दिया
जैन दर्शन का कथन यह है कि तीनों का समन्वय ही मुक्ति का साधन है!  अज्ञान और वासना के घने जंगल को जलाकर भस्म करने वाला दावानल सम्यक ज्ञान है ! ज्ञान का अर्थ यहाँ पुस्तकीय ज्ञान से नहीं है बल्कि अपनी आत्मा के स्वरुप का ज्ञान से है ! परन्तु यह सम्यक ज्ञान उसी के जीवन मे प्राप्त हो सकता है जिसे सम्यक दर्शन की एक किरण प्राप्त हुई हो ! भले ही उस किरण का प्रकाश कितना ही मंद क्यों न हो !
सम्यक दर्शन का प्राप्त होना सम्यक चरित्र के बिना संभव नहीं ! इसीलिए जैन दर्शन सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान व सम्यक चरित्र के समन्वय को ही मोक्ष मार्ग मानता है !

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