मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday 22 February 2013

सुख


जय जिनेन्द्र बंधुओं .......प्रणाम ! शुभ प्रात:
मनुष्य और बुद्धत्व के मध्य वासनाओं की मजबूत दीवार बन चुकी है ! उस दीवार को गिराये बिना मनुष्य परमात्मा नहीं हो सकता! मनुष्य अज्ञानता के कारण बाह्य जगत् को संवारना चाहता है ! उसी में वह सुन्दरता और सौख्य की कल्पना कर रहा है ! उसे यह विवेक होना चाहिये कि संसार तभी सुन्दर प्रतीत होता है, जब अन्तःकरण शुचिर्भूत होता है! प्राप्त होने वाली भोग - विलास की सामग्रियों के द्वारा भी मनुष्य तब तक सुखी नहीं हो सकता, जब तक कि मन प्रसन्न नहीं होता ! सुख बाहरी जगत की  देन नहीं है, वह तो अन्तस् का पावन संगीत है ! मन प्रसन्न है तो सारी वस्तुयें सुखदायक और मन अप्रसन्न हो तो सारी वस्तुयें दुःखदायक होती हैं ! बाहर जो कुछ परिलक्षित हो रहा है, वह सब अन्तस् का प्रक्षेपण है ! अतः सुखेच्छ भव्य को वासनाओं का विलय करने विषयक प्रयत्न करना चाहिये
आचार्य श्री सुविधि सागर जी के प्रवचनों से

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