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Saturday 16 February 2013

विवेक की आँख


मित्रों जय जिनेन्द्र ......शुभ प्रात: प्रणाम
आँखों का मनुष्य के जीवन मे बहुत अधिक महत्त्व है ! आँखों के बिना मनुष्य की दुनिया बहुत छोटी हो जाती है ! कहने का तात्पर्य है कि दुनिया तो उतनी होती है बस आँखों के बगैर मनुष्य के लिए दुनिया वैसी नहीं रहती जैसी सामान्य व्यक्ति के लिए होती है !
विवेक एक आँख है और विवेकी व्यक्ति के संपर्क मे रहना दूसरी आँख है ! जिसके पास न विवेक की आँख है और न विवेक संपन्न व्यक्ति के संपर्क मे रहने की आँख है , वह आँखें होते हुए भी अंधा होता है !
जिसके पास विवेक की आँख होती है उसके जीवन मे पथ सुगम  हो जाता है !कई बार बाहर की आँख न होने पर भी विवेक की आँख व्यक्ति को बहुत आगे ले जाती है , सही दिशा व दशा का ज्ञान करा देती है !
आध्यात्म की दृष्टि से देखा जाए तो चक्षु इन्द्रिय का संयम विशेष महत्व रखता है ! मनभावन रूप को देख कर उसमे आसक्त हो जाना और राग के भाव पैदा हो जाना और अन्य को देखकर द्वेष के भाव या खेद के भावों का आना दोनों ही  स्थितियां मानव जीवन मे घातक सिद्ध हो सकती हैं !
पतंगा प्रकाश के रूप पर आसक्त हो जाता है और अपना जीवन नाश कर बैठता है ! इसी तरह मानव मन जब अन्य स्त्री या पुरुष के रूप को देख कर जब आसक्त हो जाता है तब व्यक्ति पतन के गहरे गढ्ढे मे गिर जाता है और उसका जीवन नष्ट हो जाता है !

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