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Thursday 17 November 2011

कापोत लेश्या


                  कापोत लेश्या
        लोग प्राय: यही कहते हैं कि हम किसी की निंदा नही करते !हमारी आदत नही है ! हमें यह तनिक भी नही भाता! परन्तु अपनी प्रशंसा किये जाते हैं ,तुलनात्मक प्रशंसा ! उनसे फलां-फलां से ,हम लाख गुना अच्छे हैं ! कितने गुने ,एक दो नही लाख गुने ! हुई न एक ही बात ! चाकू को तरबूज पर मारो या तरबूज को चाकू पर ,कटता तरबूज ही है ! आप पर निंदा करो या स्वयं की प्रशंसा करो बात एक ही है !
         पर निंदा की अपेक्षा स्वयं की स्तुति में बडाई में ,डींग में व्यक्ति समय निकाल  ही लेता है ! मैंने ऐसा किया ,वैसा किया ,बात एक ही है !
        एक ने ‘नेगटिव’ को पकड़ा है ,दूसरा ‘पोसिटिव’ से जुड जाता है कापोत धारा –प्रवाह चालु ही रहता है ! फोटो स्पष्ट दिखाई देती है ! एक कुछ काली प्रतीत होती है ,दूसरी साफ़ सुथरी उजली दिखाई देती है ! अपनी प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है ! बुराई से ,पाप से कोई भी प्यार नही करता ,उसे दूसरों से नही कहता
आत्म प्रशंसा को ही वह सबसे श्रेष्ठ मानता है !इसे महत्व प्रदान करता है !
      कुछ व्यक्ति अत्यंत चतुर,अत्यंत होशियार होते हैं ! उनके पास बहुत बड़ी कला होती है !वे चाहे तो दो व्यक्तियों को लड़ा दें ,भाई - भाई को ,पति पत्नी को लड़ा दे ,देवरानी जेठानी को ,सास बहु को लड़ा दें ,दो समाज को लड़ा दें !
     यही जैन दर्शन में कापोत लेश्या है !
आचार्य 108 श्री पुष्पदंत सागर जी की "परिणामों का खेल"से

2 comments:

  1. Kapot leshya is a very famous leshya.The person having dis leshya is really very Diplomat by his/her nature.

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  2. Tanu,that is what Aachrya ji wants to convey in this article.

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