मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 22 November 2011

पढ़े और चिंतन करें

जो व्यक्ति जैसा करता है !उसको वैसा ही फल मिलता है ,
कोई भी कोयला खायेगा तो मुहं अवश्य ही काला होगा ,
कप्टाई चाहे जितनी करो ,पर एक दिन अवश्य ही उसकी 
धूर्तता खुले बिना नही रहती ,निश्छल ह्रदय ही प्रेम
का सच्चा द्वार है !

विचारों पर भोजन का अचूक प्रभाव पड़ता है !
संसार में लोकाक्ति भी है 'जैसा खाओगे अन्न 
वैसा बनेगा मन '

किसी भी व्यक्ति को अहंकार नही करना चाहिये ,
क्योंकि  अहंकार से उन्नति व प्रगति का मार्ग 
अवरुद्ध हो जाता है !

जीभ में ही जहर है ,और जीभ में ही अमृत है !
अमृतमय ,मधुर वचन सबको मनोज्ञ लगते हैं ,
मधुर वचन से सारा संसार वश में हो जाता है ,
और मधुरभाषी का सर्वत्र सम्मान होता है !


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