मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 23 November 2011

विवाह

प्रेम विवाह और धर्म  विवाह बस इतना ही अंतर है --
     एक में प्रेम पहले होता है विवाह बाद में .
     दूसरे में विवाह पहले होता है प्रेम बाद में
परिणाम -
    एक में प्रेम खो जाता है विवाह रह जाता है ,
    दूसरे में विवाह खो जाता है प्रेम रह जाता है !

  जीवन भर पेम और आत्मीयता ,यह भारतीय संस्कृति है !इसका अनुपालन हर व्यक्ति को करना चाहिये
  जीवन सिर्फ भोग और विलासिता के लिये ही नही मिला है ,ये जीवन तो त्याग और संयम के मार्ग पर आगे
  आगे बढ़ने के लिये मिला है !

  मुनि श्री   108   प्रमाण सागर जी की 'दिव्या जीवन का द्वार' से

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