मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 23 November 2011

मित्रता

मित्रता में .जब एक का व्यवहार रुक्षता आ
जाती है ,तब दुसरे के व्यव्हार में स्निग्धता
का सवाल ही कहाँ रहता है !पारस्परिक मित्रता 
तभी टिक सकती है ,जबकि व्यव्हार में 
संतुलन रखा जाये ! एक हाथ से ताली नही
बजती !

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