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Wednesday 2 November 2011

लेश्या -भाव व द्रव्य लेश्या

       जब तक चित्त में ,मन के अंतर्मन में किसी भी कोने में ,किसी भी
प्रकार के संकल्प विकल्प हें ,तब तक आत्मा को अशुद्ध माना है ,सागर सुशान्त –नितान्त स्तब्ध हो जाता है –उसमे किसी भी प्रकार की कोई लहरें नहीं उठती ,तभी उसमे स्व ‘आतम बिम्ब प्रकट होता है आत्मदर्शन की प्राप्ति होती है ! समस्त विकल्पों के ,भावों के लुप्त होने पर ही ,आत्म ज्ञान .आत्मज्योति के दर्शन संभव होते हें!
      वही आत्मा परम शुद्ध होती है ,जहाँ चित्त निर्विकल्प होता है ,पता नहीं हमारे चित्त में निरंतर कैसे कैसे भाव उठते रहते हें !हमारा चित्त विचारों की सूक्ष्म तरंगों से घिरा हुआ है ! कौन सी लेश्या इसे कब और कैसे बांधती है ,यही हो हमें समझना है !
      अभी हमारा चित्त बंधा हुआ है ,घिरा हुआ है ! आत्मा में उठने वाले संकल्प विकल्प रुपी जो सूक्ष्म भाव हें,भगवान महावीर स्वामी ने उन्हें अपनी देशना के अंतर्गत लेश्या कहा है
      लेश्या के दो भेद कहे हैं ! भाव लेश्या व द्रव्य लेश्या !द्रव्य लेश्या ऊपर से देखने में आती है ! आपके रंग को देखकर इसका पता चल जाता है ,पूर्ण बोध हो जाता है !यह जीवन पर्यंत बना रहता है !भाव लेश्या मन में होती है यह अंतर्मुख में असंख्यात बार बदलती जाती है !
आचर्य पुष्पदंत सागर की “कर्मो का खेल” से 

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