मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 23 November 2011

जरा सोचिये

हर बात को गहराई से सोचना चाहिये !
शब्दावली की यथार्थता  पर ध्यान देना 
चाहिये !शब्द के यथार्थ को पकडे बिना 
गलत अनुमान कर लेने से बड़ा अनर्थ 
हो सकता है !

धन की परवाह न करते हुए इंसान को 
कदम कदम पर इज्जत का ख्याल 
रखना चाहिये ! धन को हाथ का मैल
समझते हुए जो इज्जत एवं वचन की 
सुरक्षा करता है ,वही  मानव महान
होता है !

संयम की साधना वही व्यक्ति कर सकता है ,
जिसके  मन में आंतरिक वैराग्य है ,जिसने
अपना मन मार लिया है !

संसार में सम्पूर्ण सुख की उपलब्धि होना बड़ा कठिन है !
दो सुख मिलते हैं ,एक चला जाता है एक मिलता है ,
तो दो चले जाते हैं ! इस तरह का क्रम चलता रहता है !
अत: संसार को विनश्वर मान कर आत्मिक सुखो के प्रति
 प्रयत्न शील रहना चाहिये !

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