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Saturday 19 November 2011

पीत लेश्या


                         पीत लेश्या
        धर्म क्षेत्र में जब सर्व प्रथम प्रवेश होता है तब एक अनुपम उत्तेजना की अनुभूति होती है ! जब हम प्रथम बार मंदिर में जाते हैं तो स्वयं अपने आपको अत्यंत निराले प्रतीत होते हैं,प्रथम बार जब हम कोई नया काम करते हैं ,तब नई अनुभूति होती ही है ! बस इसी नई अनुभूति की शुरुआत यहीं से होती है
        सुन्दर नाम है पीत लेश्या (तेजो लेश्या) लाल रंग इसका प्रतीक है ,अग्नि जब प्रज्वलित होती है तब उसका रंग लाल होता है यह जलाती है दोषों को ,मल को जलाकर वस्तु को शुद्धि प्रदान करती है उसे निर्मल बनाती है तभी वह धरम लेश्या ,तेजो लेश्या है !
        प्रबुद्ध – इसका सरल अर्थ है ‘समझदार’ पहले अज्ञानी था ,अब कुछ समझदार हो गया है अब अपेक्षा है सब कार्य सोच –समझकर करेगा ,क्योंकि अब विवेक जागृत हो गया है ,अब समझने लगा है कि जीवन में उसकी स्तिथि क्या है ,उसे वास्तव में करना क्या है !किस तरह ओर किस राह पर कैसे चलना है !
        अब आप करुणा ,दया से भरे होते हैं !दूसरे का दुःख आपको अपना दुःख महसूस होता है ,आपके सुख में सब सहभागी होते हैं ! आपका सुख एकमात्र आपका नही रह जाता ,दूसरों के दुःख बाँट लेने को आप तत्पर रहते हैं ! आप तब अनुभव करते है ,विचार करते हैं कि सभी प्राणियों की आत्मा समान है ,उसमे किसी प्रकार का कोई अंतर नही है !
        दीपक अलग – अलग प्रकार के हैं, उनकी बाती भी अलग –अलग प्रकार की है !परन्तु जब वे प्रज्वलित होती हैं तो उनमे कोई अंतर नही रहता !
         अब आपका विवेक आपसे कहता है मेरी और आपकी आत्मा एक सी ही है केवल बाहरी रूप रंग में अंतर है !अन्तरंग समान है !
        इस सुखद अनुभूति की प्राप्ति होने पर कितना अद्भुत आनंद प्राप्त होता है और महसूस होता है कि आज तक मै कहाँ था ,आज तक मुझे इस रहस्य का पता क्यों नही था !
        इसी जीवन में प्रवेश होने का नाम धर्म लेश्या में प्रवेश होना है यही पीत लेश्या (तेजो लेश्या) है !
कृपया इन बातों को समझने के लिये पिछले article भी पढ़े ‘कृष्ण लेश्या’ ,”नील लेश्या” व ‘कापोत लेश्या’
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी की पुस्तक “परिणामों का खेल” से  

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