मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Sunday 13 November 2011

नील लेश्या


                                    नील लेश्या
गुरु से शिष्य कि कौन सी बात अनजानी है !
सागर को मालुम है ,बूंद में कितना पानी है !
गगन में उड़कर क्यों दिखाते हो अपनी उड़ान को
यही तो संसारी प्राणी की  एक नादानी है !
          बूंद यदि गर्व से भरकर अहंकार का प्रदर्शन करे तो सागर जान लेता है कि उसमे कितना ‘पानी’ है ! गुरु जानते हैं,तुम कौन हो ,क्या हो परन्तु उन्हें उससे कोई मतलब नहीं है वे तुम्हारे आभामंडल को बखूबी जान रहे फिर भी मौन हैं क्योंकि वीतरागी हैं!  मायाचारी करने वाले के पीछे नीले रंग का आभामंडल बन जाता है और विचारों का सम्प्रेषण स्वयंमेव ही हो जाता है नील लेश्या कि सद्भावना में ही वे लोगों को ठगना चाह्ते हैं
       सदा मान चाहने वाला व्यक्ति इतना शुद्र होता है  बात-बात में सम्मान ही चाहता है! जब आपके घर आता है और यदि आपने बैठने को चाय नाश्ते को नहीं भी पूछा जल्दी में हो आप,आपने बैठने को भी नहीं कहा !क्या एक प्याली चाय कि भी मेरी योग्यता नहीं !रूठ जाएगा –चला जाएगा –आपके घर से लौट जाएगा !ताउम्र इस बात को याद रखेगा कि आपने चाय नाश्ते के लिये भी नहीं पूछा !  ये सभी नील लेश्या के व्यक्ति के लक्षण हैं !
आचार्य 108 श्री पुष्पदंत सागर जी की “परिणामों का खेल”से

2 comments:

  1. सबसे गहरी hoti hai कृष्ण लेश्या .......फिर........नील लेश्या ...........कापोद लेश्या ...........रक्त...........पित्त ...........और शुक्ल लेश्या.........
    गनीमत है की वो सिर्फ नाराज ही होते हैं... कृष्ण लेश्या वाले तो हिंसक भी हो जाते हैं............
    एक उदाहरण .........जामुन के पेड़ से जामुन खाने हैं तो कृष्ण लेश्या वाला पुरे पेड़ को काटकर जामुन खाने की बात करेगा.........दूसरा डाली तोड़ने की और शुक्ल लेश्या वाला कहेगा जमीं पर गिरे जामुन से ही अपना कम चल जायेगा तो फिर ज्यादा हिंसा की कान्हा जरुरत है...........

    कषाय की प्रबलता से हमारा [आभा मंडल जिसे औरा भी कहते है ] बनता है और वही लेश्या कहलाती है...........

    हमें क्रमश ; शुक्ल लेश्या की और बढ़ना है..............अपने कषायों को हल्का करना है.............
    घेवरचंद सुराणा
    gmsurana@gmail.com

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  2. बहुत अच्छा कहा सुराना जी ,धन्यवाद

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