मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 29 November 2011

संतोष अमृत

मन की असंतोष वृति ही दुःख का कारण बनती है 
और संतोष वृति सुख का कारण , अति लोभी किसी 
भी स्तिथि में सुखी नही हो सकता  ,अन्ततोगत्वा 
वह दुःख का ही कारण बनता है !   संतोषामृत  ही 
जिसकी  आत्मा तृप्त होती है वही व्यक्ति सुख का 
आस्वादन  कर  सकता है !

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