मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday 8 December 2011

असंयम


    असंयम
            वृद्धावस्था के कारण तुम्हारा शारीर कुबड़ा हो गया है ! कमर झुक गयी है ,अब तुम्हारी चाल भी लाठी के आश्रित हो गयी है ,दांतों की पंक्ति बाहर आ गयी है ,मुहं से लार बहता है ,कान सुनने से जबाब दे रहे हैं ,सिर के बाल सफ़ेद हो गए हैं ,आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा है ! पूरा शारीर क्षीण हो गया है ,यूँ कहें कि कब्र पर पैर लटके हैं फिर भी तुम्हारा मन विषयों की आकांक्षा करता है ,कितना निर्लज्ज है ! आसक्ति यही होती है ! यह मनुष्य की आयु नही देखती ! आसक्ति के समक्ष  आयु का कोई बंधन नही ,एक अल्प आयु का व्यक्ति भी निस्पृह हो सकता है और अधिक उम्र के वृद्ध  में अधिक आसक्ति हो सकती है ! यह आसक्ति ही हमें असंयम की ओर आकर्षित करती है ! अत: जितना भी बन सके अपनी वृत्तियों पर नियंत्रण रखते हुए संयम धारण करने की कोशिश करें !
आचार्यों ने कहा है – “भवस्य सारं किलव्रत धारणं” –इस भव का सार व्रताचारण ही है ,उसी से हम अपनी आत्मा का उद्धार कर सकते हैं !
मुनि  श्री  108  श्री प्रमाण सागर जी की “दिव्य जीवन का द्वार” से

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