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Sunday 25 December 2011

निर्जीव की सजीव बातें स्तम्भ व जीना

 "स्तम्भ" व "जीना "
श्री मंदिर जी के चारों खम्भे जिनके कन्धों पर पूरी मंजिल का भर रखा हुआ था -एक दिन एकान्त में सीढ़ियों से बोले -तुम पर न बोझ है ,और न तुम मंदिर जी का कोई भार उठाती हो फिर भी लोग तुम्हे आदर से "जीना " शब्द से संबोधित करते हैं !जो संभवत: संसार का गौरवतम शब्द है ! इस प्रकार के गौरवमय शब्द से हमें तो कोई संबोधित नही करता !
सीढियां मुस्कुराई -फिर धीरे से बोली -तुम सिर्फ भार उठाना जानते हो ! सिर्फ भार उठाना जीना नही है
फिर तुम कौन सा अनोखा कार्य करती हो -एक खम्भे ने कहा !
सुनो ,मै नीचे धरातल पर खड़े मानवों को चुपचाप ऊपर के स्तर तल पर उठाती हूँ ! बताओ किसी को नीचे से ऊपर उठाना क्या कम गौरव का काम है -"जीना" ने कहा 
तब  उनमे से एक खम्भे ने सोचकर कहा -यह कार्य तो वास्तव में महत्वपूर्ण है !
सीढियां पुन: बोली और सुनो यह कार्य करने में मुझे कदम -कदम पर पदाघात सरीखे अपमान को सहना पड़ता है ,शास्त्र बार -बार सीख देते हैं कि पदाघात सरीखे अपमान को सहकर भी नीचेवालों को ऊपर उठाने में अपना जीवन लगा दे उसी का जीना वास्तव में "जीना " है ! मै शास्त्र की  लीक पर चल रही हूँ ,इसी से लोग आदर से मुझे "जीना" शब्द से संबोधित करते हैं !
उत्तर  पाकर खम्भे स्तंभित रह गए -तभी से लोग इन्हें स्तम्भ कहने लगे ! उन्होंने भी सनातन सत्य जान लिया कि जिसका ध्येय नीचों को ऊपर उठाना है ,उसी का जीना वास्तव में "जीना " नही तो केवल संसार का भार ढोना ही है !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार



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