मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 20 December 2011

संयम

यह शरीर एक नटखट घोड़े के सामान है ओर इस शरीर पर सवारी 
कर के हमें अपने अंतिम गंतव्य तक पहुंचना है ! जो व्यक्ति अपनी 
वृत्तियों पर नियंत्रण रखने  की  क्षमता अर्जित कर लेता है वह 
अपनी वृत्तियों  का परिष्कार कर लेता है ,उसकी प्रवृत्ति बदल
जाती है,वह स्ववश होता है ,धरम में साधना को बहुत अधिक महत्व 
दिया गया है और साधना का मूल लक्ष्य अपनी वृत्तियों का शोधन 
है !जब तक मनुष्य अपनी सोच में परिवर्तन नही लाता ,तब तक उसकी 
प्रवृत्ति नही बदलती  और प्रवृत्ति नही बदलती तो जीवन में कोई 
परिवर्तन दिखाई नही देता !
मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी "दिव्य जीवन का द्वार " में
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

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