मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Saturday 10 December 2011

प्रेम


             तुमने अनुभव  किया होगाकि तुम्हे  जो भी सुन्दर लगता है तुम उसे पाना चाह्ते हो ,उसे अपनाना चाह्ते हो ,उस पर अपना अधिकार ज़माना चाह्ते हो !परंतू  स्मरण रहे ,प्रेम कभी भी अधिकार नही चाहता ,प्रेम में केवल तद्रूपता होती है ! वहां किसी प्रकार के बंधन और अधिकार का प्रश्न नही रह जाता ! जहां आत्मीयता होती है तब बंधन कैसा ? और तद्रूपता में किसीका किस पर कैसा अधिकार ?
                         

                               प्रेम तोडना नही, जोड़ना है ,प्रेम मिटाना नही बनाता है ,गिराता नही अपितु उठाता है ,उठने में सहायता करता है ,प्रोत्साहन देता है वह मारता नही जिलाता है ,बांधता नही ,मुक्त करता है ! जहां पर बंधन है ,बंधन कि अल्प भी भावना है ,अवश्य जानो कि घृणा छिपी हुई है ,और जहां घृणा है वहां अहम भी है ! स्वामित्व की भावना भी है ! अपनी आत्मा को प्रेममयी बना लो ! यह प्रेम ही तुम्हे अपूर्व आनंद से भर देगा ! अनादि काल की अशान्ति समाप्त हो जावेगी ! हृदय में एक अनुपम ,शीतल ,सुख का आह्ल्लाददायक स्पर्श का अनुभव करोगे ! बस यही तुम्हारा वास्तविक जीवन है !
                              हे आत्मन !तनिक सोचो ,क्या यह बाहिय प्रेम कभी तुम्हे तृप्ति प्रदान कर सकता है ? इसका पान करके तुम क्या मदहोश हो सकते हो ? क्या तुम इसके बिना जीवित नही रह् सकते ? तब तुम्हारा मन निश्चय जानो तुमसे कहेगा कि यह बाहिय प्रेम ...मात्र प्रेम का अहसास है ,झूठा है ! शारीर से यह मात्र खिलवाड़ करना है ! आत्मा में ,उसकी गहराई का कोई सम्बन्ध नही है ! यह केवल सोंदर्य में छिपा हुआ एक छलावा है ,धोखा है ,भ्रम है ! तू आज तक इसमें उलझकर फंसता रहा है ! प्रेम के छलावे में वासनाओं कि दुष्ट चिंगारियां तुझे झुलसाती रही हैं ...तू तडपता रहा है ! इनके लिये तू अपने बहुमूल्य प्राणों कि सदा से आहुति देता आया है ! अब इसे तू अंतिम आहुति समझना ,इसके बाद तुझे कोई आहुति नही देनी है ! इस पीड़ादायक कष्ट पूर्ण अनुभूति से तो तुझे छुटकारा पाना है ! यही मुक्ति है ! उनके चरणों में सम्पूर्ण समर्पण का सुख ,शान्ति एवम आन्नद कि सुखद अनुभूति प्राप्त कर सकता है !
                             अब तुझे अपने इसी आत्म प्रकाश में आगे बढ़ना है ,यह प्रकाश कभी बुझता नही ! आंधी और तूफ़ान ,गहन से गहन अन्धकार में भी तेरा यह सतत मार्ग दर्शन करेगा ...तू निश्चिन्त हो जा ,इसी में तेरा कल्याण है !
                           प्रभु के प्रति ,गुरु के प्रति ,उनकी असीम अनुकम्पा से इस आत्म ज्योति को एक बार प्रज्वलित कर ले ! यह दीपक उनके महिमामंडित श्री चरणों में सम्पूर्ण श्रद्धा ,विशवास एवम निश्ठा से समर्पित कर दे और बढ़ता जा साहस पूर्वक .......तेरी अवश्य विजय होगी ! तू वीरों में सर्वश्रष्ठ है !  
  आचार्य  श्री 108 श्री पुष्पदंत सागर जी की "आध्यात्म के सुमन " से 

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