मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Friday 6 January 2012

पद्म लेश्या

        पद्म लेश्या यानि धर्म लेश्या ! पीला रंग उदासीनता का प्रतीक है !इस लेश्या की स्थिति मे वैराग्य उत्पन्न होता है !पीत लेश्या (तेजो लेश्या ) के उदय से ही  धर्म मे,इस क्षेत्र मे प्रवेश होता है ! आत्मा क्या है यह जानने की जिज्ञासा प्राप्त होती है ! इस स्थिति के साथ ही प्राणी जीवन मे रोगों के प्रति भी उदासीन हो जाता है ,संसार के समस्त भोगों के प्रति मन मे तीव्र अरुचि जाग उठती है !जीवन मे त्याग का श्रीगणेश प्रारंभ हो जाता है !अब आत्मरमण मे ही अद्भुत शान्ति प्राप्त होती है !
      व्यक्ति अपने मे मस्त होता है ,स्वयं मे डूब जाता है ,तब उसे आत्म विस्मृति हो जाती है ! दूसरों से तब वह अपनी तुलना नही करता ! समस्त संघर्ष के भाव समाप्त हो जाते हैंतब फिर वह स्वयं से ही स्वयं के लिए जीता है ! 
      लाल रंग यात्रा का प्रथम चरण है शुक्ल रंग यात्रा का अंतिम चरण है !पीत रंग दोनों के मध्य सेतु का काम करता है जैन धर्म की साधना की स्थिति मे साधक पीले के वस्त्रों का प्रयोग करता है !पीला रंग समर्पण को सूचित करता है ,सम्पूर्ण समर्पण  !वृक्ष के पत्ते जब पीले होते हैं ,तब वे वृक्ष से अपना सम्बन्ध छोड़ देते हैं ,पीले वस्त्रों के माध्यम से साधक मानो यह सूचित कर रहा है कि सांसारिक भोगों के प्रति वह उदासीन है ! संख्यात रानियों के स्वामी श्रीकृष्ण पीताम्बर धारी थे ! योगीराज थे ! यह उदासीनता "गृहस्थाश्रम" से मुक्ति का सूचक है !
      जैसे पत्ते वृक्ष को छोड़ देते हैं ! साधक गृहस्थाश्रम का परित्याग कर देता है !इस आश्रम से सम्बंधित समस्त अहंकार विगलित हो जाता है ! इस लेश्या से युक्त जीव के लक्षण हैं ,दयाशील होना ,सदा त्यागी होना ,पूजा अर्चना मे तत्पर होना ,शुचिर्भुता यानी भगवान कि भक्ति से मन पवित्र होते ही रत्नत्रय से शरीर भी शुचिर्भुत(पवित्र ) हो जाता है !ताप और त्याग से आत्मा मे निखार उत्पन्न हो जाता है ,सदानन्दा यानि  भक्त फिर सदा के लिए आत्मा मे और आत्मानंद मे ही रमण करने लगता है ! सत्य के आनंद मे डूबकर वह सदानंद स्वरुप बन जाता है !
आचार्य श्री 108  श्री पुष्पदंत सागर जी की पुस्तक "परिणामों का खेल " से 
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

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