मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 3 January 2012

"तुम" और "मै "


मै ‘तुम’ मे समां जाऊं ‘तुम’ ‘मुझ’ मे समां जाओ
दूरी न रहे कोई आज इतने करीब आओ”

   कहने को तो ये एक गीत की पंक्तियाँ हैं लेकिन इस के गहरे मे उतरें तो ये महसूस होता है कि भक्त अपने भगवान से कह रहा है ,अरदास कर रहा है कि मुझ मे और तुम मे अब कोई दूरी न रहे, मेरे दिल मे तुम्हारी छवि ,तुम्हारी मूरत ऐसे बस जाए कि अब मुझे तुम्हारे सिवा और कुछ दिखाई ही न दे ! गुरु को दृष्टि कर के ये कह रहा है, भावना कर रहा है  कि अब सोते,जागते,उठते बैठते ,खाते ,पीते मुझे तुम्हारी शिक्षा ,तुम्हारे वचन याद भी रहें  तो जीवन की  जीवन की आधी से ज्यादा समस्या यूँ ही पल भर मे समाप्त हो जाएँ !
कविवर कैलाश चंद जैन अपने एक गीत मे कहते हैं

प्रभु देख तुम्हारी छवि हमारा मन आज हुआ दीवाना है
हम सब ने मिलकर आज यहाँ प्रभु वीर तेरा गुण गाना है    
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

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