मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 18 January 2012

आस्था

आस्था   कोई  झाड  नही  , जो  तूफानों  से  गिर  जाए !
दृष्टि  सूर्यमुखी का  फूल नही .सूर्य देख वह फिर जाए !
यथार्थ  समर्पण  मे  कोई  , शर्त नही  होती  है  भाई ,
श्रद्धा संकल्प यथावत है ,जीवन चाहे संकट  मे घिर जाए ! 
इसीलिए आचार्य कहते हैं :-
पंच परम पद ध्यान से जग मे कीर्ति होए 
जो इनको निज मे ,लखे, कर्म बंध न होए !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात: 

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