मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 24 January 2012

स्वाध्याय

          स्वाध्याय के बिना हमें अपने शरीर के अंदर छिपी आत्मा का ज्ञान नही हो सकता ,जैसे नेत्र रहित व्यक्ति सूर्य के दर्शन नही कर सकता ! वैसे हि आत्म चक्षु से रहित मानव अपनी आत्मा का दर्शन नही कर सकता !जिस प्रकार बिना प्रकाश के ,अँधेरे मे जैसे नेत्रों के द्वारा धरे हुए पदार्थों का भी पूर्ण ज्ञान नही होता ,उसी प्रकार बिना शास्त्रों के अनुभव किये हुए भी सत्य कर्त्तव्य का ज्ञान नही होता ! ज्ञान नेत्र का उदघाटन शास्त्र स्वाध्याय से ही  होता है!बिना शास्त्र ज्ञान के चक्षु होने पर भी नीतिकारों ने अंधा कहा है !
       जो पदार्थ चक्षु द्वारा प्रतीत नही होता ,उसे प्रकाशित करने के लिए शास्त्र ही समर्थ हैं !यह शास्त्र ज्ञान मनुष्यों के लिए तीसरा नेत्र है !  
 आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे 

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