मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Saturday 21 January 2012

गुरु

         गुरु का पद उस उगते हुए सूर्य से बढ़कर है ! जो उगते ही अन्धकार को नष्ट कर देता है ,जब सूर्य उगता है तो अन्धकार नष्ट हो जाता है ,लेकिन अस्त होते ही अन्धकार फिर से अपना स्थान ग्रहण कर लेता है !  सुगुरु जब अज्ञान रुपी अन्धकार को हटाकर ह्रदय मे ज्ञान दीप जला देते हैं तो फिर वह कभी बुझता नही ! 
        सच्चे गुरु कौन :  सम्यक् दर्शनादि रत्नत्रय का पालन करने वाले ,सांसारिक दुखों के नाशक ,इष्ट वस्तु  मे राग रहित व अनिष्ट वस्तु मे द्वेष रहित तथा मोह और अज्ञान से दूर ,ऐसे तपस्वी जन हमारे मन मे हर्ष को उत्पन्न करें !जो मुनिराज पाप वर्धक क्रियाएँ नही करते ,शान्ति ,इन्द्रिय दमन ,प्राणी  संयम व इन्द्रिय संयम मे तत्पर हैं !और सांसारिक कृषि ,वाणिज्य  व व्यापार आदि क्रियाओं से दूर रहते हैं ! ऐसे सच्चे गुरु मुनिराज हमारे ह्रदय मे विराजमान रहें !
      आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
      सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओ को यथोचित  नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
     शुभ प्रात:

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