मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Monday 23 January 2012

पूजा अर्चना

      भगवान की पूजा अर्चना वही व्यक्ति कर सकेगा जो त्यागी होगा ,परमात्मा के प्रति जिसके ह्रदय मे गहरी आस्था होगी !
      "ए री मै तो प्रेम -दीवानी ,मेरा दर्द न जाने कोय ! "
      "दर्द  की मारी वन वन डोलूं ,वैद्य मिला न कोय मीरा की पीड़ा तबहि मिटेगी ,जब वैद्य सांवलिया होई ! मीरा की पीड़ा और गोकुल की  गोपियों की पीड़ा  मे कोई अंतर नही था ,यह पीड़ा थी ,परमेश्वर से मिलने की "
         ऐसे जो प्रेम का दीवाना है ,उसका दर्द .परमात्मा ही समझ सकता है ! ऐसा व्यक्ति कर्मों से मुक्त होने की चाह मे अर्चन करके अपने मन से भक्ति के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त कर रहा है ! धर्म के कार्य के लिए ,परमात्मा के नाम पर समर्पित भाव से एकदम कुछ भी करने को तैयार रहता है ! सुई चुभते ही एकदम खून बाहर निकल आता है ,इश्वर के कार्य के लिए यह प्राणी इतना ही तैयार रहता है !
       गोस्वामी तुलसीदास को अपनी पत्नी से बेहद प्रेम था ,तभी तो उसकी बात मानी ! पत्नी से एक दिन का वियोग भी उन्हें सहन नही होता था !पत्नी जब मायके गई तो आप भी उससे मिलने निकल पड़े मार्ग मे नदी पड़ी ! उसे तैरकर पार किया ! मुर्दे को लट्ठा समझा ! सांप को रस्सी समझकर उसे पकड़कर छत पर पहुँच गए !पत्नी से मिले !उसने उपदेश दिया -जितना इस हाड मांस के शरीर से आपको प्रेम है ,उतना ही प्रेम यदि आप परमात्मा से कर लेते ,तो आपका जीवन सार्थक हो जाता !
        बात उनकी समझ मे आ गई !तत्क्षण उन्होंने घर छोड़ दिया ,और सभी जानते है उन्हें यथार्थ मे इश्वर की प्राप्ति हुई !
          तुलसीदास ने जिनागम के मर्म  को समझा एवं अपने जीवन मे कठोर तपस्या की एवं त्याग को ही सर्वोपरि महत्व प्रदान किया !जो मिटने को तैयार हो ,वही तो परमात्मा की भक्ति कर  सकता है,भक्ति के मार्ग मे कृपणता नही चाहिए ,कायरता भी नही चाहिए ! परमात्मा के द्वार पर दस्तक देना ,उसके द्वार का चौकीदार बन जाना !वही द्वार एक दिन साक्षात परमात्मा से मिलाने मे सक्षम होगा !  
आचार्य पुष्पदंत सागर जी की “परिणामों का खेल” से 

सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
 

No comments:

Post a Comment