मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Saturday 28 January 2012

निंदक नियरे राखिये

             नीच बन जाता है ,इंसा सजाएं देकर 
          जीतना  चाहिये दुश्मन को दुआएं देकर 
            भारतीय परम्परा मे शत्रु के प्रति दया का भाव देखा जाता  है , और शत्रुता के प्रति त्याग और घृणा का भाव देखा जाता है ! यहाँ व्यक्ति प्रधान नही गुण प्रधान हैं ! हमारे अंदर कोई बुराई न पनपे इसके लिए तो किसी ने यहाँ तक कहा है कि अपनी निंदा करने वाले को अपने पास  रखें - 
निंदक नियरे राखिये ,आँगन दरी छवाय 
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय 
          इसका  अर्थ यह नही है कि निंदकों को बुला लो ,इसका अर्थ ये है कि निंदक आ जाए तो मौन धारण कर लो ! "आँगन दरी छवाय " का अर्थ लिपाई ,पुताई नही ,आँगन दरी छवाय का अर्थ है पवित्रता ! आत्मा को पवित्र करते हुए मौन धारण कर लेना ! उससे कोई मतलब नही , उसकी उपेक्षा कर देना ! उपेक्षा का अर्थ है नासाग्र दृष्टि ! नासाग्र दृष्टि कर लो ,तो दुनिया अपने आप छूट जायेगी ! 
              क्षमा का अर्थ है ,पर को  निरपेक्ष करके आत्मा के शांत स्वभाव मे स्थिर हो जाना ,पर निरपेक्ष हुए बिना आत्मा के शांत स्वभाव को नही पाया जा सकता ! जब मै चाह रहा हूँ कि मेरी आत्मा मे शान्ति प्राप्त होवे तो क्यों नही होती ? जब मै चाहता हूँ कि आत्मा के स्वभाव कि उपलब्धि होवे तो क्यूँ नही होती है ? अनंत काल हो गया सुख चाहिए ,मिला क्यों नही ? खोजो आगे पीछे देखो ! आगे पीछे झाँकने के बाद थोडा नीचे झांकना ,निमित्त को पहचानना है ! निमित्त को मत हटाओ ! निमित्त से स्वयं हट जाओ ! जब स्वयं निमित्त से हट जाओगे तो अपने आप अकिंचित्कर हो जाएगा ! निमित्त  अपने स्थान पर पड़ा रहेगा ! तुम्हारा कोई बाल भी बांका नही कर सकेगा ! निमित्त अकिंचित्कर करने एक अर्थ है ,निमित्त जैसे ही तुन्हें सामने मिले ,दुर्जन क्रूर व्यक्ति जैसे ही तुम्हारे सामने आये ,तो तुम सावधान हो जाना ,अपने से कहना ,मुझे मेरी परीक्षा देने का मौका मिल गया ,अच्छा है तुम गाली दे रहे हो , मै समझ लूँगा अब मेरे मे कितनी समता पैदा हुई है ! मै अपनी परीक्षा तो कर पाऊं गा ! 
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

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