मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Sunday 22 January 2012

गुरु उपदेश

           निस्संदेह लोक मे चन्दन शीतल है .चन्द्रमा तो शीत् रश्मि होने से उससे भी शीतल है ,किन्तु जो चन्दन व चन्द्रमा से भी शीतल है वह साधु की संगति है ,क्योंकि वह केवल बाहिय सुख देने वाली ही नही है ,अपितु अंतरात्मा तक पवित्र भावों की शीतलता पहुंचाकर कल्याण कारी होती है ! कहा भी है -
        सदैव संतों की सेवा करनी चाहिए ,भले ही वह उपदेश न  देते हों ,फिर भी शरीर मात्र से वाणी के बिना ही मोक्ष मार्ग का निरूपण तो करते हैं ,भला गन्ना मिठास के अलावा कुछ दे सकता है क्या ? पुष्प के पास सुगन्ध के अलावा कुछ है क्या ? संतजन प्रकृति से ही आकुलता से तपते हुए मनुष्यों के लिए शीतल जलवर्षी मेघ होते हैं !विशेष पुण्य से ही सच्चे गुरु मिलते हैं ,कहा भी है -
        प्रत्येक पर्वत पर माणिक्य नही होते ,प्रत्येक गज से गज मुक्ता नही मिलता ,प्रत्येक वन मे चन्दन के वृक्ष नही होते और सर्वत्र सच्चे गुरु नही मिलते !
    आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे   सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओ को यथोचित     नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

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