मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Sunday 29 January 2012

"दुर्जन क्रूर कुमार्ग्ररतों पर क्षोभ नही मुझको आवे "

                 जिसके अंदर इच्छा शक्ति है ,प्रभु के प्रति आस्था है ,सत्ता मे पुण्य प्रकृति बैठी है ,उसका दुनिया की कोई ताकत कुछ नही बिगाड़ सकती ! न जाने क्यों किस-किस ने कितने कितने लोगों ने बिगाड़ने का मात्र अहंकार किया है ,क्रोध को उत्पन्न किया है लेकिन बिगाड़ नही पाए ! आचार्य कहते हैं  बिगाड़ने मे भी कभी -कभी बनाने के लक्षण छुपे होते हैं ! चिंता नही कर ! समता परिणाम धारण करने वाले को सूली भी सिंहासन हो जाती है ,जैसे सेठ सुदर्शन को हुई ! सर्प भी फूल माला बन जाती है जैसे सोमा सती के साथ हुआ !
                क्षमा रुपी तलवार जिसके हाथ मे है ,दुर्जन उसका क्या कर सकता है ,जैसे  इंधन से रहित स्थान मे अग्नि स्वयं शांत हो जाती है !
            "दुर्जन क्रूर कुमार्ग्ररतों  पर क्षोभ नही मुझको आवे "
              कितनी बड़ी बात कही है तुम भले ही सज्जन हो पर दूसरों की दुर्जनता पर क्षुभित मत होना !कोई प्रश्न कर सकता है कि उन पर तो क्षोभ करना चाहिये जो कुमार्गरत हैं ,आचार्य कहते हैं -नही ! उन पर भी क्षुभित होने की आवश्यकता नही है उनके प्रति मध्यस्थ होने की आवश्यकता है !
             क्षमा मनुष्य को माता के समान है ! हितकारी है ! माता तो एक समय फिर भी क्रोध को प्राप्त हो सकती है ,क्षमा नही ! अर्थात क्षमावान व्यक्ति कभी भी क्रोध को प्राप्त नही हो सकता !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

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