मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 17 January 2012

प्रातिहार्य

तरु अशोक  के निकट  मे ,  सिंहासन  छाविदार !
तीन  छत्र   सिर   पर   ढूरें ,  भामंडल  पिछवार !
दिव्य  ध्वनि  मुखते  खिरे ,पुष्प वृष्टि सुर होए ! 
ढोरें  चौसंठ  चमर  जख , बाजे   दुन्दुभि  जोय !

1.तीर्थंकर भगवान के निकट अशोक वृक्ष होता है!
2.अशोक वृक्ष के नीचे सिंहासन होता है !
3.भगवान के सिर पर तीन छत्र होते हैं !
4.भगवान के पीछे भामंडल होता है !
5.भगवान जिनेन्द्र के मुखकमल से दिव्य ध्वनि खिरती है !
6.समवशरण मे देवों द्वारा पुष्प वृष्टि होती है !
7.देव भगवान के ऊपर चौसंठ(64) चमर ढोरते हैं !
8.दुन्दुभि बाजे समवशरण मे बजते रहते हैं !

आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

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