मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Sunday 1 January 2012

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि


        सुरभिपुर मे जगभूति नाम का एक विद्वान था जो अपने शिष्यों के साथ सामुद्रिक शास्त्र मे बड़ा निपुण कहा माना जाता था ! वो एक समय शिष्यों के साथ गंगा स्नान के लिए निकला ! थोड़ी दूर पर उसे किसी के पद चिन्हों के निशान दिखाई दिये ! उन पद चिन्हों को देख कर जगभूति आश्चर्यचकित हो उठा ! उसे लगा यह पदचिन्ह तो किसी चक्रवर्ती  या सम्राट के ही हो सकते हैं !  उसने अपने शिष्यों से उन पदचिन्हों का पीछा करके ये पता लगाने को कहा कि ये पदचिन्ह किसके हैं ! उसके मन मे ये उत्साह था कि वो भावी चक्रवर्ती या सम्राट को ये घोषणा कर के बड़ा इनाम व स्वर्ण मुद्राओं का हकदार हो सकता है! शिष्य लौट कर आये तो उसे उन की बात पर विश्वास नही हुआ ,एक शिष्य ने उसे कहा था कि जिस व्यक्ति के ये पदचिन्ह हैं ,वह और कोई नही बल्कि एक नग्न दिगम्बर साधु है !
          यह कैसे हो सकता है –उसने अपने ज्ञान का फिर से उपयोग किया और पाया कि यह समुद्र शास्त्र के मुताबिक़ तो किसी चक्रवर्ती अथवा सम्राट के ही पदचिन्ह हो सकते हैं ! एक बार को उसे लगा कि सारा समुद्र शास्त्र झूठा है ,बेकार है और वो उस शास्त्र को गंगा नदी मे प्रवाहित करने को उद्दयत हो गया ! मार्ग मे उसकी  एक और परिचित विद्वान से मुलाक़ात हुई तो उसने अपने संशय का निवारण चाहा ! वह विद्वान उस  नग्न दिगम्बर साधु के चरित्र और गुणों से परिचित था ! उसने समझाया कि तुम्हारा ज्ञान बिलकुल सही है और वह दिगम्बर साधु कोई और नही ,स्वयं चरित्र चक्रवर्ती और योग सम्राट महावीर हैं ,जिसके चरणों मे  दुनिया नतमस्तक होती है !
      ओह –मेरी दृष्टि को ये क्या हो गया था ? मै स्वयं क्यों उन्हें नही पहचान पाया ! जैसे ही उसकी दृष्टि बदली ,उसकी तो सृष्टि ही बदल गयी ! उसने आध्यात्म ग्रंथों का मनन चिंतन किया व कालान्तर मे अपने शिष्यों के साथ भगवन महावीर के समवशरण मे जाकर दीक्षित हुआ और आत्म कल्याण करके धन्य हुआ !  

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